शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
हम ने भी साथ ही तक़रीर का पहलू बदला
कहिए तो किस के फँसाने की ये तदबीरें हैं
आज क्यूँ चीं-ब-जबीं से ख़म-ए-गेसू बदला
इक तिरा रब्त कि दो दिन कभी यकसाँ न रहा
इक मिरा हाल कि हरगिज़ न सर-ए-मू बदला
उन हसीनों ही को ज़ेबा है तलव्वुन ऐ दिल
हाँ ख़बर-दार जो भूले से कभी तू बदला
दिल-ए-मुज़्तर की तड़प से जो मैं तड़पा 'बेख़ुद'
चारा-गर ख़ुश हैं कि बीमार ने पहलू बदला
ग़ज़ल
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
बेखुद बदायुनी