EN اردو
शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला | शाही शायरी
shikwa sun kar jo mizaj-e-but-e-bad-KHu badla

ग़ज़ल

शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला

बेखुद बदायुनी

;

शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
हम ने भी साथ ही तक़रीर का पहलू बदला

कहिए तो किस के फँसाने की ये तदबीरें हैं
आज क्यूँ चीं-ब-जबीं से ख़म-ए-गेसू बदला

इक तिरा रब्त कि दो दिन कभी यकसाँ न रहा
इक मिरा हाल कि हरगिज़ न सर-ए-मू बदला

उन हसीनों ही को ज़ेबा है तलव्वुन ऐ दिल
हाँ ख़बर-दार जो भूले से कभी तू बदला

दिल-ए-मुज़्तर की तड़प से जो मैं तड़पा 'बेख़ुद'
चारा-गर ख़ुश हैं कि बीमार ने पहलू बदला