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शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा क्या करते | शाही शायरी
shikwa hum tujhse bhala tez hawa kya karte

ग़ज़ल

शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा क्या करते

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

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शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा क्या करते
घर तो अपने ही चराग़ों से जला क्या करते

तुम तो पहले ही वफ़ाओं से गुरेज़ाँ थे बहुत
तुम से हम तर्क-ए-तअल्लुक़ का गिला क्या करते

गुल में रंगत थी नज़ारों में जवानी तुझ से
हम तिरे बाद बहारों का भला क्या करते

तुझ से दिल में जो गिला था वो न लाए लब पर
फिर से हम भर गए ज़ख़्मों को हरा क्या करते

हम तो कर देते गिला तुझ से न आने का तिरे
घोंट देती थी पर उम्मीद गला क्या करते

जिस की उल्फ़त में हर इक चीज़ लुटा दी 'फ़य्याज़'
हम को समझा गए आदाब-ए-वफ़ा क्या करते