शिकवा-ए-बेजा की क्या उन से शिकायत हम करें
कुछ तो हैं पहले ही बरहम और क्या बरहम करें
वो तवज्जोह दें तो हो आरास्ता बज़्म-ए-हयात
वो निगाहें फेर लें तो अंजुमन बरहम करें
यूँ बदल लें ताला-ए-ख़ुर्शीद से बख़्त-ए-सियाह
आसमाँ की तरह सर को तेरे दर पर ख़म करें
आइना-दार-ए-नमूद-ए-हुस्न रोज़-अफ़्ज़ूँ जो हो
हम कहाँ से रोज़ पैदा इक नया आलम करें
आगही सर-चश्मा-ए-रंज-ओ-अलम 'तासीर' है
हम ख़ुशी से ही नहीं वाक़िफ़ तो फिर क्या ग़म करें
ग़ज़ल
शिकवा-ए-बेजा की क्या उन से शिकायत हम करें
मोहम्मद दीन तासीर