शिकस्ता-ख़्वाब-ओ-शिकस्ता-पा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
मैं आख़िरी जंग लड़ रहा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
हवाएँ पैग़ाम दे गई हैं कि मुझ को दरिया बुला रहा है
मैं बात सारी समझ गया हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
न जाने कूफ़े को क्या ख़बर हो न जाने किस दश्त में बसर हो
मैं फिर मदीने से जा रहा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
मुझे अज़ीज़ान-ए-मन मोहब्बत का कोई भी तजरबा नहीं है
मैं इस सफ़र में नया नया हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
मुझे किस से भलाई की अब कोई तवक़्क़ो' नहीं है 'ताबिश'
मैं आदतन सब से कह रहा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
ग़ज़ल
शिकस्ता-ख़्वाब-ओ-शिकस्ता-पा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
अब्बास ताबिश