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शिकायत मुझ से ये अक्सर दर-ओ-दीवार करते हैं | शाही शायरी
shikayat mujhse ye aksar dar-o-diwar karte hain

ग़ज़ल

शिकायत मुझ से ये अक्सर दर-ओ-दीवार करते हैं

ख़ुशबीर सिंह शाद

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शिकायत मुझ से ये अक्सर दर-ओ-दीवार करते हैं
कि अब इस घर से सन्नाटे बहुत बेज़ार करते हैं

ज़रूरत हाथ फैलाने पे जब मजबूर करती है
तो किस मुश्किल से अपने आप को तय्यार करते हैं

अगर ये बात है जीना पड़ेगा तेरी शर्तों पर
तो फिर ऐ ज़िंदगी जीने से हम इंकार करते हैं