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शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता | शाही शायरी
shishe ke muqaddar mein badal kyun nahin hota

ग़ज़ल

शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता

हस्तीमल हस्ती

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शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता
इन पत्थरों की आँख में जल क्यूँ नहीं होता

क़ुदरत के उसूलों में बदल क्यूँ नहीं होता
जो आज हुआ है वही कल क्यूँ नहीं होता

हर झील में पानी है हर इक झील में लहरें
फिर सब के मुक़द्दर में कँवल क्यूँ नहीं होता

जब उस ने ही दुनिया का ये दीवान रचा है
हर आदमी प्यारी सी ग़ज़ल क्यूँ नहीं होता

हर बार न मिलने की क़सम खा के मिले हम
अपने ही इरादों पे अमल क्यूँ नहीं होता

हर गाँव में मुम्ताज़ जनम क्यूँ नहीं लेती
हर मोड़ पे इक ताज-महल क्यूँ नहीं होता