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शेवा-ए-ज़ब्त को रुस्वा दिल-ए-नाशाद न कर | शाही शायरी
shewa-e-zabt ko ruswa dil-e-nashad na kar

ग़ज़ल

शेवा-ए-ज़ब्त को रुस्वा दिल-ए-नाशाद न कर

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

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शेवा-ए-ज़ब्त को रुस्वा दिल-ए-नाशाद न कर
लब-ए-ख़ामोश को आलूदा-ए-फ़रियाद न कर

दिल है गंजीना-ए-सद-गौहर-ए-असरार-ए-वफ़ा
ऐ निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ इसे बर्बाद न कर

सफ़हा-ए-दिल से मिटा अज़मत-ए-माज़ी के नुक़ूश
हैं ये भूले हुए अफ़्साने इन्हें याद न कर

शेवा-ए-जौर को रख अहल-ए-वफ़ा तक महदूद
आम फ़ैज़-ए-ख़लिश-ए-दर्द-ए-ख़ुदा-दाद न कर

रख नज़र वुसअ'त-ए-दामान-करम पर अपने
तू ख़ता-पोश है 'मख़फ़ी' की ख़ता याद न कर