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शेवा-ए-नाज़ होश छल जाना | शाही शायरी
shewa-e-naz hosh chhal jaana

ग़ज़ल

शेवा-ए-नाज़ होश छल जाना

नज़ीर अकबराबादी

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शेवा-ए-नाज़ होश छल जाना
तर्ज़-ए-रफ़्तार दिल कुचल जाना

सफ़-ए-मिज़्गाँ के झोक से गिर कर
हम से कब हो सका सँभल जाना

उस ने आने कहा है सुब्ह ऐ अश्क
तू पलक पर न एक पल जाना

हम अभी मुंतज़िर हैं आने के
दिन ढलेगा तो तू भी ढल जाना

दिल ने सीखा है बे-तरह से 'नज़ीर'
बिन कहे बिन सुने निकल जाना