EN اردو
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली | शाही शायरी
sheKH ne naqus ke sur mein jo KHud hi tan li

ग़ज़ल

शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली

अकबर इलाहाबादी

;

शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
फिर तो यारों ने भजन गाने की खुल कर ठान ली

मुद्दतों क़ाइम रहेंगी अब दिलों में गर्मियाँ
मैं ने फोटो ले लिया उस ने नज़र पहचान ली

रो रहे हैं दोस्त मेरी लाश पर बे-इख़्तियार
ये नहीं दरयाफ़्त करते किस ने इस की जान ली

मैं तो इंजन की गले-बाज़ी का क़ाइल हो गया
रह गए नग़्मे हुदी-ख़्वानों के ऐसी तान ली

हज़रत-ए-'अकबर' के इस्तिक़्लाल का हूँ मो'तरिफ़
ता-ब-मर्ग उस पर रहे क़ाइम जो दिल में ठान ली