शौक़ से नाकामी की बदौलत कूचा-ए-दिल ही छूट गया
सारी उमीदें टूट गईं दिल बैठ गया जी छूट गया
फ़स्ल-ए-गुल आई या अजल आई क्यूँ दर-ए-ज़िंदाँ खुलता है
क्या कोई वहशी और आ पहुँचा या कोई क़ैदी छूट गया
लीजिए क्या दामन की ख़बर और दस्त-ए-जुनूँ को क्या कहिए
अपने ही हाथ से दिल का दामन मुद्दत गुज़री छूट गया
मंज़िल-ए-इश्क़ पे तन्हा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी
थक थक कर इस राह में आख़िर इक इक साथी छूट गया
उस ने अदू का सोग किया याँ इस से वफ़ा की आस बंधी
दाग़-ए-तमन्ना रंग-ए-हिना की देखा-देखी छूट गया
'फ़ानी' हम तो जीते-जी वो मय्यत हैं बे-गोर-ओ-कफ़न
ग़ुर्बत जिस को रास न आई और वतन भी छूट गया
ग़ज़ल
शौक़ से नाकामी की बदौलत कूचा-ए-दिल ही छूट गया
फ़ानी बदायुनी