EN اردو
शौक़-ए-आवारा यूँही ख़ाक-बसर जाएगा | शाही शायरी
shauq-e-awara yunhi KHak-basar jaega

ग़ज़ल

शौक़-ए-आवारा यूँही ख़ाक-बसर जाएगा

सिद्दीक़ शाहिद

;

शौक़-ए-आवारा यूँही ख़ाक-बसर जाएगा
चाँद चुपके से किसी घर में उतर जाएगा

उस की सोहबत भी है इक ख़्वाब-सरा में रहना
वो जो चल देगा तो ये ख़्वाब बिखर जाएगा

वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम है प लाज़िम तो नहीं
ज़ख़्म जो उस ने दिया है कभी भर जाएगा

जिंस-ए-ताज़ा के ख़रीदार पड़े हैं हर-सू
कैसे बे-कार मिरा हर्फ़-ए-हुनर जाएगा

सोच लीजे कि ये अय्याम गुज़र जाएँगे
मतला-ए-फ़िक्र बहर-तौर निखर जाएगा

नाख़ुदा कश्ती में सूराख़ किए जाता है
हम भी डूबेंगे वहीं आप जिधर जाएगा

शौक़-ए-दीदार में उस सर्व-ए-रवाँ के 'शाहिद'
मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा