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शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच | शाही शायरी
shauq baDhta hai mere dil ka dil-afgaron ke bich

ग़ज़ल

शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच

आबरू शाह मुबारक

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शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच
जोश करता है जुनूँ मजनूँ का गुलज़ारों के बीच

आशिक़ाँ के बीच मत ले जा दिल-ए-बे-शौक़ को
शीशा-ए-ख़ाली को क्या इज़्ज़त है मय-ख़्वारों के बीच

रू-ब-रू और आँख ओझल एक साँ हो जिस का प्यार
इस तरह का कम नज़र आता है कुइ यारों के बीच

'आबरू' ग़म के भँवर में दिल ख़ुदा सेती लगा
नाख़ुदा कुछ काम आता नहिं है मंजधारों के बीच