शरह-ए-फ़िराक़ मदह-ए-लब-ए-मुश्कबू करें
ग़ुर्बत-कदे में किस से तिरी गुफ़्तुगू करें
यार आश्ना नहीं कोई टकराएँ किस से जाम
किस दिल-रुबा के नाम पे ख़ाली सुबू करें
सीने पे हाथ है न नज़र को तलाश-ए-बाम
दिल साथ दे तो आज ग़म-ए-आरज़ू करें
कब तक सुनेगी रात कहाँ तक सुनाएँ हम
शिकवे-गिले सब आज तिरे रू-ब-रू करें
हमदम हदीस-ए-कू-ए-मलामत सुनाइयो
दिल को लहू करें या गरेबाँ रफ़ू करें
आशुफ़्ता-सर हैं मुहतसिबो मुँह न आइयो
सर बेच दें तो फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ अदू करें
''तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वुज़ू करें''
ग़ज़ल
शरह-ए-फ़िराक़ मदह-ए-लब-ए-मुश्कबू करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़