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शराब-ख़ाना तिरा ऐसा इंतिख़ाब नहीं है | शाही शायरी
sharab-KHana tera aisa intiKHab nahin hai

ग़ज़ल

शराब-ख़ाना तिरा ऐसा इंतिख़ाब नहीं है

कमाल अहमद सिद्दीक़ी

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शराब-ख़ाना तिरा ऐसा इंतिख़ाब नहीं है
ख़वास पीते हैं सब के लिए शराब नहीं है

शिकार ज़ुल्म का जो हैं उन्हीं पे है हर शिद्दत
वो जो हैं ज़ालिम उन पर कोई इ'ताब नहीं है

ये तेरा फ़र्ज़ है साक़ी मिले सभी को बराबर
है तेरा मंसब साक़ी कोई ख़िताब नहीं है

यहाँ तो कोई नहीं आदमी सभी हैं फ़रिश्ते
मिरे अलावा यहाँ पर कोई भी ख़राब नहीं है

फ़रोग़-ए-कैफ़ियत-ए-बादा से हुआ है ये शादाब
न पढ़ ये चेहरा मिरा ये कोई किताब नहीं है

सराब वाहिमा नज़रों के सामने मौजूद
धड़क रहा है जो इदराक में सराब नहीं है