शनासाई का सिलसिला देखती हूँ
ये तुम हो कि मैं आइना देखती हूँ
हथेली से ठंडा धुआँ उठ रहा है
यही ख़्वाब हर मर्तबा देखती हूँ
बढ़े जा रही है ये रौशन-निगाही
ख़ुराफ़ात-ए-ज़ुल्मत-कदा देखती हूँ
मिरे हिज्र के फ़ैसले से डरो तुम!
मैं ख़ुद में अजब हौसला देखती हूँ

ग़ज़ल
शनासाई का सिलसिला देखती हूँ
फरीहा नक़वी