EN اردو
शनासा-ए-हक़ीक़त हो गए हैं | शाही शायरी
shanasa-e-haqiqat ho gae hain

ग़ज़ल

शनासा-ए-हक़ीक़त हो गए हैं

हामिदी काश्मीरी

;

शनासा-ए-हक़ीक़त हो गए हैं
वो सब तस्वीर-ए-इबरत हो गए हैं

दिखाते हैं वो रस्ता क़ाफ़िलों को
जो महरूम-ए-बसारत हो गए हैं

फ़सील-ए-शहर के अंदर न जाना
वो सारे गुर्ग-सूरत हो गए हैं

फ़रोज़ाँ हैं बुलावे साहिलों के
असीर-ए-मौज-ए-ज़ुल्मत हो गए हैं

जबीनों पर रक़म आयात-ए-शफ़क़त
क़तील-ए-तेग़-ए-नफ़रत हो गए हैं