शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
जूड़े की गुंधावट क़हर-ए-ख़ुदा बालों की महक फिर वैसी ही
razor-sharp hair's parting line, the luster in her eye's divine
enrapturing, her coiffure's braid, scent of her tresses does pervade
आँखें हैं कटोरा सी वो सितम गर्दन है सुराही-दार ग़ज़ब
और उसी में शराब-ए-सुर्ख़ी-ए-पाँ रखती है झलक फिर वैसी ही
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हर बात में उस की गर्मी है हर नाज़ में उस के शोख़ी है
क़ामत है क़यामत चाल परी चलने में फड़क फिर वैसी ही
warmth in everything she says, in all her airs there mischief plays
slender and tall, fairy like grace, a flutter in her every pace
गर रंग भबूका आतिश है और बीनी शोला-ए-सरकश है
तो बिजली सी कौंदे है परी आरिज़ की चमक फिर वैसी ही
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नौ-ख़ेज़ कुचें दो ग़ुंचा हैं है नर्म शिकम इक ख़िर्मन-ए-गुल
बारीक कमर जो शाख़-ए-गुल रखती है लचक फिर वैसी ही
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है नाफ़ कोई गिर्दाब-ए-बला और गोल सुरीं रानें हैं सफ़ा
है साक़ बिलोरीं शम-ए-ज़िया पाँव की कफ़क फिर वैसी ही
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महरम है हबाब-ए-आब-ए-रवाँ सूरज की किरन है उस पे लिपट
जाली की कुर्ती है वो बला गोटे की धनक फिर वैसी ही
her breasts in silken bustier, rays of the sun adhere to her
her lacy blouse does so ignite, shimmering with golden light
वो गाए तो आफ़त लाए है हर ताल में लेवे जान निकाल
नाच उस का उठाए सौ फ़ित्ने घुँगरू की झनक फिर वैसी ही
when she sings storms are in spate, at every tune my life's forfeit
her dancing raises mutiny, bells on her feet a symphony
हर बात पे हम से वो जो 'ज़फ़र' करता है लगावट मुद्दत से
और उस की चाहत रखते हैं हम आज तलक फिर वैसी ही
at every step she does restrain, zafar, for long I've tried in vain
and yet the love I've felt for her, does to this very day recur
ग़ज़ल
शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
बहादुर शाह ज़फ़र