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शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए | शाही शायरी
shamim-e-yar na jab tak chaman mein chhu aae

ग़ज़ल

शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए

अमीरुल्लाह तस्लीम

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शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
न रंग आए किसी फूल में न बू आए

मज़ा तो जब है शहादत का मैं इधर से बढ़ूँ
उधर से तेग़-ए-जफ़ा खिंच के ता गुलू आए

दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत में
हर एक गुल से तिरे पैरहन की बू आए

ज़बाँ दराज़ सिनाँ ज़ख़्म में दरीदा दहन
कहीं न दोनों में रंजिश की गुफ़्तुगू आए

दिखाएँ हुस्न-ए-बयाँ शाइरी में क्या 'तस्लीम'
ज़बान आए न अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू आए