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शमएँ रौशन हैं आबगीनों में | शाही शायरी
shaMein raushan hain aabginon mein

ग़ज़ल

शमएँ रौशन हैं आबगीनों में

वामिक़ जौनपुरी

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शमएँ रौशन हैं आबगीनों में
दाग़-ए-दिल जल रहे हैं सीनों में

फिर कहीं बंदगी का नाम आया
फिर शिकन पड़ गई जबीनों में

ले के तेशा उठा है फिर मज़दूर
ढल रहे हैं जबल मशीनों में

ज़ेहन में इंक़िलाब आते ही
जान सी पड़ गई दफ़ीनों में

बात करते हैं ग़म-नसीबों की
और बैठे हैं शह-नशीनों में

जिन को गिर्दाब की ख़बर ही नहीं
कैसे ये लोग हैं सफ़ीनों में

हम-सफ़ीरो चमन को बतला दो
साँप बैठे हैं आस्तीनों में

हम न कहते थे शाइरी है वबाल
आज लो घिर गए हसीनों में