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शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए | शाही शायरी
shama-ru aashiq ko apne yun jalana chahiye

ग़ज़ल

शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए

ग़मगीन देहलवी

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शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए
कुछ हँसाना चाहिए और कुछ रुलाना चाहिए

ज़िंदगी क्यूँकर कटे बे-शग़ल इस पीरी में आह
तुम को अब उस नौजवाँ से दिल लगाना चाहिए

इस मैं सब राज़-ए-निहाँ हो जाएँगे हम पर अयाँ
फिर उसे इक बार घर अपने बुलाना चाहिए

फिर ये मुमकिन है कि मेरे पास तू इक दम रहे
कुछ न कुछ ऐ यार बस तुझ को बहाना चाहिए

गो बहुत होशियार आशिक़ ऐ परी-रू हैं तिरे
लेकिन उन में एक 'ग़मगीं' सा दिवाना चाहिए