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शम-ए-हसरत जला गए आँसू | शाही शायरी
sham-e-hasrat jala gae aansu

ग़ज़ल

शम-ए-हसरत जला गए आँसू

सफ़िया शमीम

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शम-ए-हसरत जला गए आँसू
रौनक़-ए-दिल बढ़ा गए आँसू

ज़ब्त-ए-ग़म की शिकस्तगी मत पूछ
उन की आँखों में आ गए आँसू

आ गई काम दिल की बे-ताबी
ख़लिश-ए-ग़म बढ़ा गए आँसू

थम गए जब फ़िराक़ में नाले
दिल में तूफ़ाँ उठा गए आँसू

जिस को दिल से लगा के रक्खा था
वो ख़ज़ाना लुटा गए आँसू

क्या क़यामत थी पर्दा-दारी-ए-ग़म
मुस्कुराते ही आ गए आँसू