EN اردو
शजर से मिल के जो रोने लगा था | शाही शायरी
shajar se mil ke jo rone laga tha

ग़ज़ल

शजर से मिल के जो रोने लगा था

अतीक़ अहमद

;

शजर से मिल के जो रोने लगा था
परिंदा डार से बिछड़ा हुआ था

ठहरता ही न था दरिया कहीं पर
मगर तस्वीर में देखा गया था

मैं तिश्ना-लब अगरचे लौट आया
मगर दरिया को ये महँगा पड़ा था

दरून-ए-दिल ख़लिश ऐसी खुली थी
कि जिस का रंग चेहरे पर उड़ा था

मैं जब निकला तमन्ना के सफ़र पर
मिरे रस्ते में इक सहरा पड़ा था

ये दुनिया जिस घड़ी गुज़री यहाँ से
मैं तेरे ख़्वाब में खोया हुआ था

मोहब्बत आग है ऐसी कि जलना
दिलों के बख़्त में लिक्खा गया था