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शैख़ तू तो मुरीद-ए-हस्ती है | शाही शायरी
shaiKH tu to murid-e-hasti hai

ग़ज़ल

शैख़ तू तो मुरीद-ए-हस्ती है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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शैख़ तू तो मुरीद-ए-हस्ती है
मय-ए-ग़फ़लत की तुझ को मस्ती है

तौफ़-ए-दिल छोड़ जाए काबा को
बस-कि फ़ितरत में तेरी पस्ती है

क्यूँ चढ़े है गधे, गधे ऊपर
तेरी दाढ़ी को ख़ल्क़ हँसती है

तेरी तो जान मेरे मज़हब में
दिल-परस्ती ख़ुदा-परस्ती है

बे-ख़ुद इस दौर में हैं सब 'हातिम'
इन दिनों क्या शराब सस्ती है