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शहर से कोई मज़ाफ़ात में आया हुआ था | शाही शायरी
shahr se koi mazafat mein aaya hua tha

ग़ज़ल

शहर से कोई मज़ाफ़ात में आया हुआ था

राशिद अमीन

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शहर से कोई मज़ाफ़ात में आया हुआ था
एक बाशिंदा मिरी घात में आया हुआ था

यूँही काटे नहीं दुश्मन ने मिरे दोनों हाथ
उस से ज़र बढ़ के मिरे हाथ में आया हुआ था

अब जहाँ ख़ुश्क ज़मीनें हैं बदन हैं बंजर
ये इलाक़ा कभी बरसात में आया हुआ था

आख़िरी रेल थी और तुझ से अचानक था मिलाप
मैं अजब सूरत-ए-हालात में आया हुआ था

इस तरह बाँट दिया तू ने मुझे हिस्सों में
जिस तरह मैं तुझे ख़ैरात में आया हुआ था

मेरी पहचान बने पेड़ परिंदे और फूल
सारा देहात मिरी ज़ात में आया हुआ था