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शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू | शाही शायरी
shahr mein tha na tere husn ka ye shor kabhu

ग़ज़ल

शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

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शहर में था न तिरे हुस्न का ये शोर कभू
मिस्र इस जिंस से इतना न था मामूर कभू

इश्क़ में दाद न चाहो कि सुना हम ने नहीं
अदल ओ इंसाफ़ का इस मुल्क में दस्तूर कभू

फ़िक्र मरहम का मिरे वास्ते मत कर नासेह
ख़ूब होता नहीं इस इश्क़ का नासूर कभू

गो न कर वादा वफ़ा दे न मुझे उस का जवाब
मुझ से मिलना भी सजन है तुझे मंज़ूर कभू

अपनी बेदर्दी की सौगंद है तुझ को ऐ मर्ग
तू ने देखा है 'यक़ीं' सा कोई रंजूर कभू