EN اردو
शहर में साएबाँ बहुत से हैं | शाही शायरी
shahr mein saeban bahut se hain

ग़ज़ल

शहर में साएबाँ बहुत से हैं

सय्यद मेराज जामी

;

शहर में साएबाँ बहुत से हैं
फिर भी क्यूँ बे-अमाँ बहुत से हैं

डर गए एक इम्तिहान से तुम
मेरी जाँ! इम्तिहाँ बहुत से हैं

लुट गया एक कारवाँ तो क्या
राह में कारवाँ बहुत से हैं

राज़-ए-उल्फ़त के हम नहीं मुजरिम
आप के राज़-दाँ बहुत से हैं

तेरी ही हम-नवा नहीं दुनिया
मेरे भी हम-ज़बाँ बहुत से हैं

इस ज़मीन-ए-सुख़न में ऐ 'जामी'
देखना आसमाँ बहुत से हैं