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शहर की रस्म है पुरानी वही | शाही शायरी
shahr ki rasm hai purani wahi

ग़ज़ल

शहर की रस्म है पुरानी वही

क़ैसर अब्बास

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शहर की रस्म है पुरानी वही
साज़िशें ताज़ा हैं कहानी वही

दर्द के मौसमों से क्या उम्मीद
सब बलाएँ हैं आसमानी वही

फिर से खींचो हिफ़ाज़तों के हिसार
फिर है दरियाओं की रवानी वही

हम फ़क़ीरों के हौसले देखो
ज़ख़्म जितने हों सरगिरानी वही

सारे आसार हैं जुदाई के
सुरमई शाम है सुहानी वही

ख़ार बोए तो ज़ख़्म पालेंगे
वक़्त दोहराएगा कहानी वही

यूँ तो सदियाँ गुज़र गईं 'क़ैसर'
दिल के सदमे तिरी जवानी वही