EN اردو
शहर का शहर लुटेरा है नज़र में रखिए | शाही शायरी
shahr ka shahr luTera hai nazar mein rakhiye

ग़ज़ल

शहर का शहर लुटेरा है नज़र में रखिए

मोहसिन एहसान

;

शहर का शहर लुटेरा है नज़र में रखिए
अब मता-ए-ग़म-ए-जानाँ भी न घर में रखिए

क्या ख़बर कौन से रस्ते में वो रहज़न मिल जाए
अपना साया भी न अब साथ सफ़र में रखिए

अब कहीं से न ख़रीदार-ए-वफ़ा आएगा
अब कोई जिंस न बाज़ार-ए-हुनर में रखिए

सर-ए-दीवार वो ख़ुर्शीद-ब-कफ़ आया है
अब चराग़-ए-दिल-ओ-जाँ राहगुज़र में रखिए

शो'ला-ए-दर्द लिए दिल-ज़दगाँ निकले हैं
अब कोई आग नई बर्क़-ओ-शरर में रखिए

चश्मा-ए-चशम पे 'मोहसिन' वो नहाने आया
अब सदा उस को इसी दीदा-ए-तर में रखिए