शहर-ए-ख़िश्त-ओ-संग में रहने लगा
मैं भी उस के रंग में रहने लगा
पहले तो आसेब था बस्ती के बीच
अब वो इक इक अंग में रहने लगा
अपनी सुल्ह-ए-दोस्ती लाई ये रंग
वो मुसलसल जंग में रहने लगा
तब जुदा होते न थे अब फ़ासला
दरमियाँ फ़रसंग में रहने लगा
उस से तर्क-ए-गुफ़्तुगू करने के बा'द
सोज़ इक आहंग में रहने लगा
शहर-ए-ख़ुश-पोशाँ को 'अज़्मी' छोड़ कर
वादी-ए-बे-रंग में रहने लगा

ग़ज़ल
शहर-ए-ख़िश्त-ओ-संग में रहने लगा
इस्लाम उज़्मा