शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा
ज़िंदगी उठ चली किधर तन्हा
मेरी रग-रग में धूल रक़्साँ है
मुझ में मौजूद है खंडर तन्हा
दश्त की ना-तमाम राहों पर
कोई साथी है तो शजर तन्हा
तेरी आहट सजा के पलकों पर
ढूँढती है तुझे नज़र तन्हा
हो के बे-नूर रात कहलाई
चाँद को ढूँढती सहर तन्हा
संग भी दिल भी और ठोकर भी
'अर्श' तन्हा न ये सफ़र तन्हा
ग़ज़ल
शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा
विजय शर्मा अर्श