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शगुफ़्ता हो के बैठे थे वो अपने बे-क़रारों में | शाही शायरी
shagufta ho ke baiThe the wo apne be-qararon mein

ग़ज़ल

शगुफ़्ता हो के बैठे थे वो अपने बे-क़रारों में

सय्यद फ़रज़नद अहमद सफ़ीर

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शगुफ़्ता हो के बैठे थे वो अपने बे-क़रारों में
तड़प बिजली की पैदा हो गई फूलों के हारों में

किया अंधेर अपने रंज ने उन की कुदूरत ने
बुझी शम-ए-मोहब्बत हाए दो दिल के ग़ुबारों में

शब-ए-फ़ुर्क़त को ज़ाहिद से सिवा मर-मर के काटा है
करे मशहूर हम को भी ख़ुदा शब-ज़िंदा-दारों में

ये किस ने कुश्ता-ए-तेग़-ए-तबस्सुम कर दिया मुझ को
मुबारकबाद का ग़ुल हो रहा है सोगवारों में

वो इशरत जिस का सब सामाँ है दिल में हो नहीं सकती
मिरी मजबूरियों को देखिए उन इख़्तियारोंं में

हमें वो ढब जो आ जाता तुम्हीं पर आज़माते हम
दिल-ए-उश्शाक़ तुम क्या कह के लेते हो इशारों में

'सफ़ीर' अब बस करो कब तक सर-ए-शोरीदा ज़ानू पर
ग़ज़ल की फ़िक्र क्यूँ कर हो सकेगी इंतिशारों में