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शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है | शाही शायरी
shafaq ke rang nikalne ke baad aai hai

ग़ज़ल

शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है

इन्दिरा वर्मा

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शफ़क़ के रंग निकलने के बाद आई है
ये शाम धूप में चलने के बाद आई है

After the colours of dusk have been splayed out
The evening has come after walking in the Sun

ये रौशनी तिरे कमरे में ख़ुद नहीं आई
शम्अ का जिस्म पिघलने के बाद आई है

This light didn't appear in your room on its own
It has come after burning the body of the candle

इसी तरह से रखो बंद मेरी आँखें अब
कि नींद ख़्वाब बदलने के बाद आई है

Keep my eyes closed in such a way now
For sleep has come after changing my dreams

यक़ीन है कि कभी बे-असर नहीं होगी
दुआ लबों पे मचलने के बाद आई है

I am convinced that it shall never go unheeded
For this prayer has come after twitching on my lips

नदी जो प्यार से बहती है रेगज़ारों में
ये पत्थरों में उछलने के बाद आई है

The river that runs sweetly through the deserts
Has come after bounding through the boulders

थी जिस बहार की उलझन तमाम मुद्दत से
वो 'इंदिरा' के बहलने के बाद आई है

That spring which caused such distress for so long
Has finally arrived, now that Indira has calmed down