EN اردو
शब-रंग परिंदे रग-ओ-रेशे में उतर जाएँ | शाही शायरी
shab-rang parinde rag-o-reshe mein utar jaen

ग़ज़ल

शब-रंग परिंदे रग-ओ-रेशे में उतर जाएँ

अहसन यूसुफ़ ज़ई

;

शब-रंग परिंदे रग-ओ-रेशे में उतर जाएँ
कोहसार अगर मेरी जगह हों तो बिखर जाएँ

हर सम्त सियह गर्द की चादर सी तनी है
सूरज के मुसाफ़िर भी इधर आएँ तो मर जाएँ

सब खेल हवाओं के इशारों पे है वर्ना
मौजें कहाँ मुख़्तार कि जी चाहे जिधर जाएँ

इस दश्त में पानी के सिवा ढूँढना क्या है
आँखों में मिरी रेत के सौ ज़ाइक़े भर जाएँ

साए की तरह साथ ही चलता है सियह-बख़्त
अब हाथ की बेचारी लकीरें भी किधर जाएँ