EN اردو
शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह | शाही शायरी
shab mein wan jaun to jaun kis tarah

ग़ज़ल

शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

;

शब में वाँ जाऊँ तो जाऊँ किस तरह
बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता को जगाऊँ किस तरह

क़िस्सा-ख़्वाँ बैठे हैं घेरे उस के तईं
दास्ताँ अपनी सुनाऊँ किस तरह

गो मैं आशिक़ हूँ प ताक़त है मिरी
हाथ पाँव को लगाऊँ किस तरह

रख दिया है सर पे इक कोह-ए-ख़याल
सर को ज़ानू से उठाऊँ किस तरह

नाला गिर्या की मदद करता नहीं
अश्क के नाले बहाऊँ किस तरह

चाह वो शय है कि छुपती ही नहीं
उस को या-रब मैं छुपाऊँ किस तरह

आ बनी है 'मुसहफ़ी' की जान पर
या-रब अपना जी बचाऊँ किस तरह