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शब किस से ये हम जुदा रहे हैं | शाही शायरी
shab kis se ye hum juda rahe hain

ग़ज़ल

शब किस से ये हम जुदा रहे हैं

क़ाएम चाँदपुरी

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शब किस से ये हम जुदा रहे हैं
ता सुब्ह निपट ख़फ़ा रहे हैं

आना है तो आ वगर्ना प्यारे
हम आप से आज जा रहे हैं

बैठें पस-ए-कार-ए-ख़्वेश क्यूँ-कर
जो नाज़ तिरे उठा रहे हैं

वीराने से मेरे डर न ऐ चुग़द
इक वक़्त तो याँ हुमा रहे हैं

ऐ हस्ती तू खींच नक़्श-ए-बातिल
हम हैं तो इसे मिटा रहे हैं

फिर आज़िम-ए-गिर्या हूँ कि तूफ़ाँ
जूँ अब्र नज़र में छा रहे हैं

रोना है अगर यही तो 'क़ाएम'
इक ख़ल्क़ को हम डुबा रहे हैं