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शब की तारीकी बढ़ती ही जाए | शाही शायरी
shab ki tariki baDhti hi jae

ग़ज़ल

शब की तारीकी बढ़ती ही जाए

दीद राही

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शब की तारीकी बढ़ती ही जाए
कौन आता है ज़ुल्फ़ बिखराए

झिलमिलाए सितारों के झुरमुट
किस की पलकों पे अश्क थर्राए

उस की जो बात है निराली है
दिल-ए-नादाँ को कौन समझाए

उन को भूले ज़माना होता है
अश्क आँखों में फिर भी भर आए

दम-ब-ख़ुद सारी काएनात हुई
हम ने वो गीत प्यार के गाए