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शब की पहनाइयों में चीख़ उठे | शाही शायरी
shab ki pahnaiyon mein chiKH uThe

ग़ज़ल

शब की पहनाइयों में चीख़ उठे

नसीर अहमद नासिर

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शब की पहनाइयों में चीख़ उठे
दर्द तन्हाइयों में चीख़ उठे

तह-ब-तह मुंजमिद थकन जागी
जिस्म अंगड़ाइयों में चीख़ उठे

धूप जब आईना-ब-दस्त आई
अक्स बीनाइयों में चीख़ उठे

मैं समुंदर हूँ कोई तू सीपी
मेरी गहराइयों में चीख़ उठे

रतजगे तन गए दरीचों पर
ख़्वाब अंगनाइयों में चीख़ उठे

जब पहाड़ों पे बर्फ़ गिरने लगे
कोई उतराइयों में चीख़ उठे

जब पुकारा किसी मुसाफ़िर ने
रास्ते खाईयों में चीख़ उठे

कुछ ख़मोशी से देखते थे मुझे
कुछ तमाशाइयों में चीख़ उठे

रात भर ख़्वाब देखने वाले
दिन की सच्चाइयों में चीख़ उठे

दिल से रुख़्सत हुई कोई ख़्वाहिश
गीत शहनाइयों में चीख़ उठे