शब के तारीक समुंदर से गुज़र आया हूँ 
टूटा तारा हूँ ख़लाओं से उतर आया हूँ 
तुझ से जो हो न सका काम वो कर आया हूँ 
आसमाँ छोड़ के धरती पे उतर आया हूँ 
दश्त-ए-तन्हाई में बिखरा हूँ हवाओं की तरह 
इक सदा बन के दिल-ए-संग में दर आया हूँ 
जाने किस ख़ौफ़ से फिरता हूँ मैं घबराया हुआ 
क्या बला बन के मैं ख़ुद अपने ही सर आया हूँ 
दिल-शिकस्ता से दर-ओ-बाम की मुद्दत के ब'अद 
ख़ैरियत पूछने उजड़े हुए घर आया हूँ 
शोख़ रातों के लिए मेरे तआक़ुब में न आ 
दर्द का चाँद हूँ ख़्वाबों में नज़र आया हूँ 
अपना साया भी 'ज़फ़र' मुझ को न पहचान सका 
किस नए भेस में मैं आज इधर आया हूँ
        ग़ज़ल
शब के तारीक समुंदर से गुज़र आया हूँ
ज़फ़र गौरी

