शब-ए-तारीक हूँ नूर-ए-सहर होने की ख़्वाहिश है
मैं ऐसा हो नहीं सकता मगर होने की ख़्वाहिश है
मोहब्बत के मुक़ाबिल आ गई है दोस्ती यारो
उधर मैं हो नहीं सकता जिधर होने की ख़्वाहिश है
वगर्ना तेरा होना और न होना एक जैसा है
किसी अहल-ए-नज़र से मिल अगर होने की ख़्वाहिश है
'रज़ा' इक दिन तुझे अपनी नज़र से भी गिरा देगी
ये जौहर इक नज़र में मो'तबर होने की ख़्वाहिश है
ग़ज़ल
शब-ए-तारीक हूँ नूर-ए-सहर होने की ख़्वाहिश है
तौक़ीर रज़ा