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शब-ए-तारीक हूँ नूर-ए-सहर होने की ख़्वाहिश है | शाही शायरी
shab-e-tarik hun nur-e-sahar hone ki KHwahish hai

ग़ज़ल

शब-ए-तारीक हूँ नूर-ए-सहर होने की ख़्वाहिश है

तौक़ीर रज़ा

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शब-ए-तारीक हूँ नूर-ए-सहर होने की ख़्वाहिश है
मैं ऐसा हो नहीं सकता मगर होने की ख़्वाहिश है

मोहब्बत के मुक़ाबिल आ गई है दोस्ती यारो
उधर मैं हो नहीं सकता जिधर होने की ख़्वाहिश है

वगर्ना तेरा होना और न होना एक जैसा है
किसी अहल-ए-नज़र से मिल अगर होने की ख़्वाहिश है

'रज़ा' इक दिन तुझे अपनी नज़र से भी गिरा देगी
ये जौहर इक नज़र में मो'तबर होने की ख़्वाहिश है