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शब-ए-ग़म मुख़्तसर सी हो गई है | शाही शायरी
shab-e-gham muKHtasar si ho gai hai

ग़ज़ल

शब-ए-ग़म मुख़्तसर सी हो गई है

मुख़्तार हाशमी

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शब-ए-ग़म मुख़्तसर सी हो गई है
हयात अब मो'तबर सी हो गई है

नई राहें निकलती आ रही हैं
ये लग़्ज़िश राहबर सी हो गई है

वफ़ा की ख़ू न जिद्दत दुश्मनी में
ये दुनिया बे-हुनर सी हो गई है

मिरी बे-चारगी क्या पूछते हो
वो अब तो चारा-गर सी हो गई है

झुकी रहने लगी हैं अब वो नज़रें
फ़ुग़ाँ कुछ कार-गर सी हो गई है