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शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे | शाही शायरी
shab-e-firaq ki zulmat hai na-gawar mujhe

ग़ज़ल

शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे

अनवर साबरी

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शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे
नक़ाब उठा कि सहर का है इंतिज़ार मुझे

क़सम है लाला ओ गुल के उदास चेहरों की
फ़रेब दे न सका मौसम-ए-बहार मुझे

ब-सूरत-ए-दिल-ए-पुर-दाग़ उन की महफ़िल से
अता हुई है मोहब्बत की यादगार मुझे

मज़ाक़ कल जो उड़ाती थी ग़म के मारों का
वो आँख क्यूँ नज़र आती है सोगवार मुझे

जफ़ा ओ जौर-ए-मुसलसल वफ़ा ओ ज़ब्त-ए-अलम
वो इख़्तियार तुम्हें है ये इख़्तियार मुझे