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शाम तक बंद रहता है कमरा मिरा | शाही शायरी
sham tak band rahta hai kamra mera

ग़ज़ल

शाम तक बंद रहता है कमरा मिरा

ग़नी गयूर

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शाम तक बंद रहता है कमरा मिरा
और कमरे में तन्हा खिलौना मिरा

दिन को उजली रिदा ओढ़ लेता हूँ मैं
देखना रात को फिर तमाशा मिरा

सच कहा था सभी मुझ से नाराज़ हैं
अब किसी से नहीं रिश्ता-नाता मिरा

अपने शे'रों पे मुझ को बड़ा फ़ख़्र है
जाने क्या गुल खिलाएगा चर्चा मिरा

दो बरस का हूँ तिफ़्ल-ए-किताबी 'ग़नी'
हो गया कितना भारी है बस्ता मिरा