शाम से मिलने गया तो रात ने ठहरा लिया
जाने कैसे चाँद ने सूरज को भी बहका लिया
हम ने चुप क्या साध ली हर शख़्स की हर बात पर
फिर हुआ जितना भी जिस से उस ने बस तड़पा लिया
माना इक उलझे हुए रेशम सा हम में रब्त था
जब सुलझ पाया न था तो और क्यूँ उलझा लिया
कुछ ने ली है हुक्मरानी और विलायत कुछ ने ली
हम ने 'हामिद' तुम को पाने वाला बस कासा लिया

ग़ज़ल
शाम से मिलने गया तो रात ने ठहरा लिया
अबरार हामिद