शाम से गहरा चाँद से उजला एक ख़याल
रात हुई और फिर आ पहुँचा एक ख़याल
दिन डूबे तो दिल में डूबता जाता है
सूरज की मानिंद सुनहरा एक ख़याल
मेरे हिस्से में वो शख़्स बस इतना है
तारीकी में जलता बुझता एक ख़याल
झीलें और परिंदे इस में रहते हैं
मेरी दुनिया एक दरीचा एक ख़याल
आख़िर आख़िर रेत में गुम हो जाएगा
सहराओं में बहता बहता एक ख़याल
लगता है कि सारी उम्र के साथी हैं
जंगल सूना सूना रस्ता एक ख़याल
ग़ज़ल
शाम से गहरा चाँद से उजला एक ख़याल
सऊद उस्मानी