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शाम का मंज़र उलझा रस्ता एक कहानी तू और मैं | शाही शायरी
sham ka manzar uljha rasta ek kahani tu aur main

ग़ज़ल

शाम का मंज़र उलझा रस्ता एक कहानी तू और मैं

अली सरमद

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शाम का मंज़र उलझा रस्ता एक कहानी तू और मैं
ढलता सूरज बढ़ता साया कश्ती-रानी तू और मैं

बंद इक कमरा चुप का मंज़र भूली-बिसरी दीपक याद
तन्हाई दुख ख़ौफ़ की लज़्ज़त दिलबर-ए-जानी तू और मैं

तितली ख़ुश्बू रंग की बातें शबनम से शर्मीले ख़्वाब
आस का पंछी गुम-सुम ख़्वाहिश रात-की-रानी तू और मैं

पलकें चिलमन शर्मा-शर्मी कम कम गोया नज़रें क़ुर्ब
रातों जैसी सीधी-सादी इक नादानी तू और मैं

रात घनेरी घोर घटाएँ सावन सी बरसात 'अली'
याद का पंछी वक़्त-ए-आख़िर आँख में पानी तू और मैं