शाम का ग़म भी जफ़ाकार उदासी मेरी
ज़ख़्म दे जाती है हर बार उदासी मेरी
जब भी होंटों को हँसाया यही पूछा ख़ुद से
क्यूँ है ख़ुशियों पे कड़ा बार उदासी मेरी
मेरे साए से लिपटने को तरसती रहती
बन गई मेरी तलबगार उदासी मेरी
गहरे तन्हाई के आलम में सुला जाती है
कितनी बन जाती है ख़ूँ-ख़्वार उदासी मेरी
मेरे अश्कों से बही बन के लहू दिल का यूँ
हो कटीली कोई तलवार उदासी मेरी
'सारथी' लुट न कहीं जाए अक़द भी तुझ से
मुझ से कहती है कई बार उदासी मेरी

ग़ज़ल
शाम का ग़म भी जफ़ाकार उदासी मेरी
मोनिका शर्मा सारथी