शाम घर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
आस मर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
वो परी एक दिन छोड़ कर जो मुझे
चाँद पर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
तू जिधर जाएगी जाऊँगा मैं उधर
तू किधर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
ज़िंदगी तेरी तरह गुज़रता हूँ मैं
तू गुज़र जाएगी मैं किधर जाऊँगा
तेरा घर है इधर मेरा घर है खंडर
तो इधर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
तेरे वा'दे पे सब छोड़ आया हूँ मैं
तू मुकर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
एक दिन ये तबीअ'त मिरी जान-ए-जाँ
तुझ से भर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
ग़ज़ल
शाम घर जाएगी मैं किधर जाऊँगा
अली इमरान