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शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए | शाही शायरी
sham-e-gham ki sahar na ho jae

ग़ज़ल

शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

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शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए
हर ख़ुशी मुख़्तसर न हो जाए

आह दिल पर असर न हो जाए
उन की भी आँख तर न हो जाए

राज़-ए-उल्फ़त सँभाल कर रखिए
हर कोई बा-ख़बर न हो जाए

हिज्र में दिल का दिल-शिकन आलम
जो इधर है उधर न हो जाए

ज़िक्र-ए-तकमील-ए-आरज़ू छेड़ो
रात यूँही बसर न हो जाए

मुझ पे इतना करम न फ़रमाओ
मेरा ग़म मो'तबर न हो जाए