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शाख़-ए-बे-नुमू पर भी अक्स-ए-गुल जवाँ रखना | शाही शायरी
shaKH-e-be-numu par bhi aks-e-gul jawan rakhna

ग़ज़ल

शाख़-ए-बे-नुमू पर भी अक्स-ए-गुल जवाँ रखना

जलील ’आली’

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शाख़-ए-बे-नुमू पर भी अक्स-ए-गुल जवाँ रखना
आ गया हमें आली दिल को शादमाँ रखना

बे-फ़लक ज़मीनों पर रौशनी को तरसोगे
सोच के दरीचों में कोई कहकशाँ रखना

रह-रव-ए-तमन्ना की दास्ताँ है बस इतनी
सुब्ह ओ शाम इक धुन में ख़ुद को नीम-जाँ रखना

कार-ओ-बार-ए-दुनिया में अहल-ए-दर्द की दौलत
सूद सब लुटा देना पास हर ज़ियाँ रखना

उस की याद में हम को रब्त ओ ज़ब्त गिर्या से
शब लहू लहू रखनी दिन धुआँ धुआँ रखना

इश्क़ ख़ुद सिखाता है सारी हिकमतें 'आली'
नक़्द-ए-दिल किसे देना बार-ए-सर कहाँ रखना