शाइर-ए-रंगीं फ़साना हो गया
शेर बुलबुल का तराना हो गया
इस क़दर नक़्शे उतारे यार ने
ये जहाँ तस्वीर-ख़ाना हो गया
वो चमन की याद ने मुज़्तर क्या
ज़हर मुझ को आब-ओ-दाना हो गया
आँख से टपकी जो आँसू की लड़ी
क़ाफ़िला ग़म का रवाना हो गया
जान लेने आए थे 'शाइर' वही
मौत का तो इक बहाना हो गया
ग़ज़ल
शाइर-ए-रंगीं फ़साना हो गया
आग़ा शाएर क़ज़लबाश